एचआईवी-एड्स की रोकथाम की दिशा में एक नए ड्रग के ट्रायल के सकारात्मक परिणामों ने मेडिकल विशेषज्ञों के बीच बहस छेड़ दी है। दावा है कि 'कैबटीग्रेवर' नाम के इस इन्वेस्टिगेशनल (जिस पर अध्ययन किया जा रहा हो) ड्रग का हर दो महीने में लगने वाला एक शॉट या टीका एचआईवी को मौजूदा प्रचलित दवाओं (त्रुवादा और डेसकवी) से कहीं बेहतर तरीके से रोक सकता है। एचआईवी का इलाज ढूंढने में लगे वैज्ञानिकों के एक समूह 'एचआईवी प्रिवेंशन ट्रायल्स नेटवर्क' के विशेषज्ञों ने रैंडमाइज्ड तरीके से किए गए ट्रायलों के परिणामों के आधार पर यह जानकारी दी है। सात देशों में किए गए इन ट्रायलों में ऐसे 4,600 सिसजेंडर (वे लोग जिनकी लैंगिक पहचान उनके जन्म के समय बताए गए लिंग से मेल खाती है) पुरुषों और ट्रांसजेंडर महिलाओं को शामिल किया गया था, जिन्होंने पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाए थे।
प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रायल के दौरान प्रतिभागियों को हर दो महीनों में दवा का एक शॉट दिया गया। दवा के प्रभाव में अंतर करने के लिए कुछ प्रतिभागियों को प्लसीबो ड्रग के शॉट भी दिए गए। इसी ट्रायल के तहत सब-सहारा अफ्रीका में किए गए परीक्षण में सिसजेंडर महिलाओं को कैबटीग्रेवर के अलावा त्रुवादा भी दी गई। यह पूरा ट्रायल साल 2022 तक चलना था। लेकिन कैबटीग्रेवर का प्रभाव इतना ज्यादा प्रभावशाली रहा कि परीक्षण मई के महीने में रोक दिया गया। अंतिम विश्लेषण के तहत यह पाया गया कि जिन प्रतिभागियों को इस नई दवा के शॉट दिए गए उनमें से 13 एचआईवी से संक्रमित हो गए थे। वहीं, जिन प्रतिभागियों को रोजाना त्रुवादा पिल दी गई, उनमें एचआईवी संक्रमितों की संख्या 39 पाई गई। इस तरह कैबटीग्रेवर एचआईवी की रोकथाम में सबसे ज्यादा प्रचलित दवा त्रुवादा से 66 प्रतिशत ज्यादा प्रभावी साबित हुई।
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ट्रायल में शामिल 372 प्रतिभागियों के एक अन्य समूह के विश्लेषण में पता चला कि उनमें से 75 प्रतिशत ने त्रुवादा पर भरोसा नहीं किया था। इन प्रतिभागियों के लिए नई दवा का इन्जेक्शन एचआईवी की रोकथाम में इस्तेमाल हो रही दवा से ज्यादा प्रभावशाली रही। इन परिणामों से उत्साहित और इन ट्रायलों में शामिल दवा कंपनी विव हेल्थकेयर साल 2021 की शुरुआत में अमेरिका की शीर्ष सरकारी ड्रग एजेंसी एफडीए से कैबटीग्रेवर के इस्तेमाल की स्वीकृति के लिए आवेदन करेगी।
'क्रांतिकारी' दवा
मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है कि एचआईवी की रोकथाम को लेकर कैबटीग्रेवर एक क्रांतिकारी बदलाव साबित हो सकती है। यह दवा न सिर्फ त्रुवादा से बेहतर साबित हुई है, बल्कि इसका इस्तेमाल भी केवल दो महीनों में एक बार करने की जरूरत है। वहीं, त्रुवादा और एफडीए द्वारा स्वीकृति प्राप्त एक और एचआईवी ड्रग डेसकवी की डोज रोजाना लेनी पड़ती है। यह मरीजों के लिए जटिल प्रक्रिया होने के साथ उनके लिए आर्थिक रूप से भी परेशानी पैदा करने वाली स्थिति भी है। गौरतलब है कि इन दोनों दवाओं को बनाने वाली कंपनी गिलीड साइंसेज ग्राहकों (यानी मरीजों) से इन ड्रग्स की लागत के रूप में भारी पैसा वसूलती हैं।
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ऐसे में कम आय वाले देशों में रहने वाले एचआईवी संक्रमितों के लिए इन्हें खरीदना अपनेआप में एक संकट है। लेकिन कैबटीग्रेवर के रूप में उनके पास एक सस्ता और बेहतर विकल्प सामने आ सकता है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता डॉ. रॉशेल वैलेन्स्की कहती हैं, 'मेरे ख्याल से यह क्रांतिकारी है। एचआईवी के इलाज और रोकथाम की योजना में एक और कंपनी का आना उत्साहवर्धक है। इससे प्रतियोगिता बढ़ेगी और दवाओं के दाम कम होंगे।'